? भाग 1 – आत्मा और शरीर का विभाजन शरीर और आत्मा, देखने में एक ही अनुभव होते हैं, परंतु उनके बीच का भेद ही जीवन का रहस्य है। शरीर प्रत्यक्ष है, आत्मा अप्रत्यक्ष। शरीर जड़ है, आत्मा चेतन। जब हम स्वयं को शरीर मान लेते हैं, तब हम सीमित हो जाते हैं; पर जब हम आत्मा को पहचान लेते हैं, तब हमें अनंत का अनुभव होता है। आत्मा उस शक्ति का रूप है जो न जन्म लेती है, न मरती है। वह साक्षी है, दृष्टा है, और समस्त क्रियाओं से मुक्त है। शरीर तो केवल आत्मा का एक माध्यम है <br>—अनुभव करने का, कर्म करने का। यह विभाजन समझना ही आत्मज्ञान की शुरुआत है। जब कोई व्यक्ति कहता है, \मैं दुखी हूँ,\ वह वास्तव में शरीर के अनुभव को आत्मा पर आरोपित कर रहा होता है। <br>आत्मा कभी दुखी नहीं होती। दुख शरीर में होता है, <br> मन में होता है। आत्मा तो केवल देखती है, जानती <br>है, साक्षी रहती है। इस भेद को जानने वाला व्यक्ति <br>संसार में रहते हुए भी संसार से अलग हो जाता है। <br>यही विवेक, यही जागरण, वही आत्म चिन्तन ब्रह्म <br>की ओर पहला कदम है।